Prayagraj News | इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह एक Contract नहीं है जिसे केवल सहमति से समाप्त किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि Legal प्रक्रिया के तहत सीमित आधारों पर ही हिंदू विवाह को समाप्त किया जा सकता है। यदि विवाह के किसी एक पक्ष पर Impotence का आरोप है, तो अदालत साक्ष्य लेकर उसे Shunya घोषित कर सकती है।
पिंकी की अपील पर कोर्ट का आदेश: यह आदेश न्यायमूर्ति एसडी सिंह और न्यायमूर्ति डोनादी रमेश की खंडपीठ ने पिंकी की अपील पर दिया है। इस मामले पर Advocate महेश शर्मा ने बहस की।
मुकदमा लंबित रहा तीन साल: कोर्ट ने कहा कि विवाह विच्छेद के मामले के दायर होने के बाद यह Case तीन साल तक लंबित रहा। पत्नी ने पहले लिखित कथन में विवाह विच्छेद पर सहमति दी थी। बाद में Mediation विफल होने और एक दूसरा बच्चा जन्म लेने के बाद पत्नी ने विवाह विच्छेद की सहमति को वापस ले लिया।
अदालत की गलती: अदालत ने पति की Objection और जवाब सुनने के बाद गुण-दोष पर निर्णय लेना चाहिए था। हालांकि, अदालत ने पत्नी के दूसरे लिखित कथन पर पति की आपत्ति की सुनवाई की तारीख तय की और विवाह विच्छेद की Decree पारित कर दी। कोर्ट ने अपर जिला जज बुलंदशहर के 30 मार्च 2011 के आदेश और विवाह विच्छेद की डिक्री को रद्द कर दिया है। साथ ही, अधीनस्थ अदालत को विवाह को बनाए रखने का Mediation विफल होने की स्थिति में नये सिरे से पति और पत्नी के जवाब लेकर आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।
मामले का विवरण: मामले के अनुसार, अपीलार्थी की शादी पुष्पेंद्र कुमार से 2 फरवरी 2006 को हुई। पति एक Soldier था। पेट में बच्चा होने के बाद पत्नी 31 दिसंबर 2007 को मायके आ गई। इसके बाद पति ने 11 फरवरी 2008 को विवाह विच्छेद का मामला दायर किया। पत्नी ने भी सहमति जताई और कहा कि वह पति की Restrictions के साथ नहीं रहना चाहती। केस लंबित रहा और Mediation प्रयास असफल रहा।
सहमति की वापसी: इसी बीच, एक और बच्चा जन्म लिया और पत्नी ने यह कहते हुए विवाह विच्छेद की सहमति वापस ले ली कि उसने साबित कर दिया है कि वह बच्चा पैदा कर सकती है। उसने दूसरा जवाब दाखिल किया। पति ने इस जवाब पर Objection की और सुनवाई की तारीख तय की गई, लेकिन अदालत ने विवाह विच्छेद की Decree पारित कर दी। इसे Appeal में चुनौती दी गई थी।