International News | ‘मौत तो देर-सवेर आनी ही है, लेकिन Field-E-Jung में मरने से बेहतर और क्या हो सकता है। मैं मर रहा हूं, लेकिन जिस इलाके के लिए हम लड़े, उसे दुश्मन के हाथ में न जाने देना।’
ये शब्द Indian Army के Brigadier उस्मान ने October 1947 में Pakistani कबाइलियों से लड़ते हुए कहे थे। उस्मान उन गिने-चुने Muslim अधिकारियों में से थे, जिन्होंने बंटवारे के बाद भारत की सेना को चुना। आजादी के वक्त British Indian Army के 4 लाख जवानों में से करीब 1.3 लाख Muslim थे। Option मिला तो 98% Muslim Soldiers ने Pakistan को चुना।
Bharat-Pak विभाजन की त्रासदी की याद में Bharat Sarkar हर साल 14 August को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाती है। Dainik Bhaskar बंटवारे से जुड़ी 3 पार्ट की Series ला रहा है। आज दूसरी कड़ी में पढ़िए Military बंटवारे के सुने-अनसुने किस्से…
बंटवारे के समय सेना की सबसे यादगार 5 कहानियां, जिनकी चर्चा कम होती है…
1. नायक नंद सिंह अपनी बटालियन बचाते हुए शहीद हो गए नायक नंद सिंह 11वीं Sikh Regiment में जमादार की पोस्ट पर थे। द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से Burma में जंग लड़ते समय उन्होंने घायल होने के बावजूद एक के बाद एक तीन Points कब्जा किए थे। उन्हें इसके लिए Victoria Cross Padak मिला था।
12 December 1947 को उनकी बटालियन पर एक Pakistani टुकड़ी ने हमला कर दिया। जगह थी Kashmir का उरी इलाका। नंद सिंह ने अपनी बटालियन को सुरक्षित निकालने में मदद की, लेकिन खुद शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत Mahavir Chakra दिया गया। ये युद्ध के मैदान में वीरता के लिए दिया जाने वाला भारतीय सेना का दूसरा सबसे बड़ा Padak है।
बंटवारे में हजारों Soldiers मारे गए। Kashmir हथियाने के लिए 1947-48 में हुई लड़ाई में 1104 Indian Soldiers शहीद हो गए, जबकि 3100 से ज्यादा घायल हुए।
कई जगह दोनों देशों की फौजों ने निकलने में एक-दूसरे की मदद भी की। अंग्रेज अफसर Major Edward Macmurdow Wright ने 1991 में लिखा, ‘Hindu Squadron के कुछ Soldiers को पठानों द्वारा मार दिए जाने का डर था। ऐसे में Regiment के अंदर वफादारी काम आई। Muslim Punjabi Squadron ने दो और Squadrons की जान बचाई और एक दिन रात में चोरी-छिपे Hindus को बाहर निकाल दिया।’
2. जब Pakistan में फहरा तिरंगा, आदेश के खिलाफ ले आए Heavy गोला-बारूद 1/7 Rajput Battalion का एक किस्सा ऐसा ही है। Retired Colonel DPK Pillai के मुताबिक, 1/7 Rajput उत्तर-पश्चिमी Frontier Province में Razmak नाम के बंजर इलाके में तैनात थी। इसमें आधे Hindu और आधे Muslim जवान थे। इसके Muslim Soldiers को 5/8 Punjab Battalion में शिफ्ट कर दिया गया। सख्त आदेश थे कि Pakistan के अंदर न ही तिरंगा फहराया जाएगा और न ही 1/7 Rajput अपने साथ कोई वीरता Padak लेकर जाएगी। ऐसा कोई आदेश Bharat में नहीं जारी किया गया था। हालांकि, Bharat की तरफ से बंदूकों के साथ सिर्फ बीस Round गोलियां लाने का आदेश था।
1/7 Rajput की अगुआई कर रहे Colonel Kuldeep Singh Bakshi ने अपनी बटालियन इलाके की एक मुख्य सड़क पर तैनात कर दी। ये सड़क 122 किलोमीटर दूर Bannu नाम की जगह तक जाती थी। Bakshi ने इस रास्ते से छोटे-छोटे Batches में गोला-बारूद भेजना शुरू कर दिया।
कोई शक न हो, इसके लिए सभी Wireless और Landline काट दिए गए। यहां तक कि Bakshi की पूरी योजना के बारे में उनके अलावा सिर्फ Subedar Major Devi Singh को पता था। Devi Singh पूर्व Army Chief General VK Singh के चाचा थे।
एक Officer को Casual Leave देकर Delhi भेजा गया और वहां से दो तिरंगे मंगवाए गए। 14 August की रात Razmak में Pakistani आदेश के खिलाफ दोनों तिरंगे आसमान में लहरा रहे थे। तिरंगे के सामने 17 Officers ने Bharat की सुरक्षा और निष्ठा की शपथ ली।
कबीलाई लड़ाकों से बचते हुए 1/7 Rajput, आखिरकार Bannu पहुंच गई। Bannu से आगे कोई भी Muslim लोकोपायलट, उनकी Train चलाने के लिए तैयार नहीं हुआ। हालांकि, बटालियन में एक Officer ऐसा था जो पहले Railway में रहा था। जैसे-तैसे बटालियन छोटी लाइन से Bannu से Mari-Sindh पहुंची। यहां दो दिन तक रुकने के बाद Attari तक के लिए एक बड़ी लाइन की Train की व्यवस्था हुई।
3 November को Train के Amritsar पहुंचने के बाद बटालियन की जांच होनी थी कि वह आगे के Mission के लिए फिट है या नहीं। दूसरी Trains में मारकाट चल रही थी। बटालियन अपनी Train में 300 औरतों और बच्चों को भी लेकर आई।
जब सेना की Western Command के GOC Lieutenant General KM Cariappa ने Unit का Inspection किया तो सभी फिट निकले और उनके साथ निकला महीने भर थोड़ा-थोड़ा करके इकठ्ठा किया गया Heavy गोला-बारूद। Machine Gun और Mortar उन Units में बांट दिए गए जिनके पास इसकी कमी थी। Razmak में Major General Fleming ने 1/7 Rajput के लिए कहा, ‘इस पृथ्वी पर कोई भी 1/7 को वो करने से नहीं रोक सकता जो वो करना चाहते हैं।’
3. Brigadier उस्मान ने कहा, धर्म वफादारी बदलने की इजाजत नहीं देता 1/7 Battalion को Gurdaspur में 77 Para Brigade को आराम देने के लिए तैनात कर दिया गया था। इसकी कमान Brigadier उस्मान के हाथों में थी। Brigadier उस्मान को Jinnah ने Pakistan में PCOS यानी Pakistani Army के मुखिया के पद का लालच दिया था। उस्मान ने Jinnah से कहा, ‘मुझे Bharat की मान्यताओं के बारे में पता है, मेरा धर्म मुझे अपने देश के लिए वफादारी बदलने की इजाजत नहीं देता।’
Pakistan ने Kashmir हथियाने के लिए 22 October 1947 को Force और हजारों कबीलाई लड़ाके दाखिल कर दिए थे। बटालियन को Naushera भेज दिया गया। KM Cariappa ने Brigadier उस्मान को Poonch और Jhangar के इलाकों को कबाइलियों से आजाद करवाकर वहां तिरंगा फहराने की जिम्मेदारी दी थी। Naushera की लड़ाई में Indian Army ने 1,000 कबाइलियों को मार गिराया, इतने ही घायल हुए। इस लड़ाई में Bharat के 32 जवान शहीद हुए। 6 February 1948 को Naushera Bharat का हिस्सा बन गया। कुछ कबाइली एक Masjid में शरण लिए हुए थे। उस्मान ने बिना कोई संकोच किए Masjid पर हमला बोल दिया। Pakistan ने उस्मान के सिर पर 50,000 का इनाम रखा था।
3 July 1948 की शाम, Pakistani Army ने Brigade Headquarters पर गोलाबारी शुरू कर दी। एक गोला उस्मान के पास गिरा और वे शहीद हो गए। उस्मान को मरणोपरांत Mahavir Chakra दिया गया। उस समय उस्मान की उम्र सिर्फ 36 साल थी। कहा जाता है कि अगर वे जीवित रहते तो Indian Army के Chief बनते।
4. कई सैनिक ऐसे भी थे, जिनका मुल्क नहीं तय हो पाया Professor Wazira Zamindar ने अपनी किताब ‘The Long Partition And The Making Of Modern South Asia’ की शुरुआत Lucknow के Ghulam Ali की कहानी से की है। Ghulam Ali कृत्रिम अंग बनाते थे। बंटवारे के ऐलान के समय वो Pakistan की Military Workshop में थे। उन्हें वापस Lucknow जाने से मना कर दिया गया और Pakistan की Army में शामिल कर लिया गया।
1950 में उन्हें ये कहकर Pakistani Army से निकाल दिया गया कि तुम Bharat के नागरिक हो। Bharat की तरफ रुख किया तो Pakistani Soldier मानकर और Permit न होने के चलते गिरफ्तार कर लिया गया। 1951 में Ghulam को Jail से निकालकर वापस Pakistan भेज दिया गया। वह 6 साल तक दोनों देशों की Jail और Refugee Camps में भेजे जाते रहे। आखिर में उन्हें Pakistan में एक Muslim Soldier मानते हुए Jail भेज दिया गया जो Pakistan के Hindu कैदियों के Camp में रह रहा था।
5.1948 में आखिरी British Battalion ने Bharat छोड़ा Army के बंटवारे के बाद धीरे-धीरे बाकी बचे British Soldiers की भी Bharat से विदाई होने लगी। 28 February को Bharat छोड़ने वाली आखिरी British Unit का नाम 1st Battalion, Somerset Light Infantry (Prince Albert) था।
Lieutenant Colonel Douglas Grey ने 1990 में लिखा, ‘मैं उन हालात में Bharat और Skinner Horse के लोगों को पीछे छोड़ रहा था। एक जवान मेरे पास आया। उसने कहा, ‘लेकिन साहब, आप हमें ऐसे कैसे छोड़ सकते हैं?’