Damoh News | यह माता रानी की मूर्ति 180 वर्ष से भी अधिक पुरानी है। 1857 की क्रांति से पहले, 1851 में इसकी स्थापना की गई थी। जिला मुख्यालय पर माता जगतजननी का एक अद्भुत Court है, जहां माता रानी की मिट्टी से बनी यह प्राचीन Idol स्थापित है। नवरात्र के दौरान, प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों से भी लोग अपनी Wish को पूरा करने के लिए यहां आते हैं। इस Temple को कई मायनों में खास माना जाता है, जहां एक ही पीढ़ी के लोग माता रानी की सेवा में दिन-रात जुटे रहते हैं।
मूर्ति की पुरातनता
इस Temple में स्थित प्रतिमा 180 वर्ष पुरानी है। पंडित हरप्रसाद भारत द्वारा 1851 में इस Temple की स्थापना की गई थी। वर्तमान में, पंडित शांतनु भारत गुरूजी, जो इसी पीढ़ी के पुजारी हैं, माता रानी की पूजा अर्चना करते हैं। यह प्रतिमा पूरी तरह से मिट्टी से निर्मित है और जिले की पहली दस भुजाधारी मूर्ति मानी जाती है, जो शूल के माध्यम से राक्षस का Destruction करती नजर आती है। इस प्रतिमा के दाईं और बाईं ओर माता रानी की Assistants भी विराजमान हैं। इसका निर्माण जिले के हटा में किया गया था और इसे दमोह Bullock Cart से लाया गया था।
दरबार का खुलना
यह माता रानी का Court साल में केवल दो बार खुलता है, अर्थात् चैत्र और कंवर के नवरात्र में। जब 1851 में माता की प्रतिमा की स्थापना हुई, तब इसे दशहरे के अवसर पर शहर में घूमने के लिए निकाला जाता था। लेकिन 1944 में, दमोह के द्वारका प्रसाद श्रीवास्तव ने गौ हत्या के खिलाफ आंदोलन चलाया, जिसके कारण अंग्रेजों ने Procession पर रोक लगा दी थी। तब, माता रानी की यह प्रतिमा लगभग 22 दिनों तक पुराना थाना में रखी रही।
मूर्ति की स्थापना का रहस्य
प्रतिमा का निरंतर पूजन किया जाता रहा। इसी दौरान, पुजारी ने मां से प्रार्थना की कि वह इस प्रतिबंध को हटा दें ताकि उनकी प्रतिमा को Temple से बाहर नहीं निकाला जाए। इसके बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने रोके गए Procession को आगे बढ़ने का आदेश दिया। मां के चमत्कार के बाद, माता की इस प्रतिमा को Temple में स्थापित किया गया। तब से लेकर आज तक, यह प्रतिमा यहीं विराजमान है।