Haryana election News: बनारसी दास को कठपुतली मुख्यमंत्री कहा गया

Haryana election News | साल 1989, चौधरी देवीलाल हरियाणा के Chief Minister पद से इस्तीफा देकर Deputy Prime Minister बने और बेटे ओमप्रकाश चौटाला को Chief Minister बनवा दिया। तब ओम प्रकाश चौटाला विधायक नहीं थे। उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना था।

ओमप्रकाश चौटाला, रोहतक जिले की Maham सीट से उपचुनाव में उतरे। यह वो सीट थी जहां से लगातार तीन बार देवीलाल जीत चुके थे। चुनाव होने पर महम सीट Violence की भेंट चढ़ गई। 10 लोगों की जान चली गई। चुनाव रद्द हो गया। महम कांड की आंच चौटाला परिवार तक पहुंची।

इधर, अप्रैल 1990, जनता दल में नए अध्यक्ष को लेकर गहमागहमी

इस दौरान रेस में दो नाम सबसे आगे थे। पहला- एसआर बोम्मई का, जिन्हें Socialist नेता चंद्रशेखर का समर्थन था। दूसरा- एस जयपाल रेड्डी का, जिनके खेमे में रामकृष्ण हेगड़े और अजीत सिंह जैसे नेता थे।

देवीलाल, बोम्मई का समर्थन कर रहे थे। उन्हें लगता था कि बोम्मई President बनते हैं, तो ओमप्रकाश चौटाला की कुर्सी बच जाएगी। उधर, रेड्डी को आशंका थी कि Prime Minister वीपी सिंह उनका साथ नहीं देंगे। इसी असमंजस में उन्होंने दावेदारी छोड़ दी। 19 मई को बोम्मई जनता दल के निर्विरोध President चुन लिए गए।

इस बीच महम कांड का शोर Parliament तक पहुंच गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चौटाला के इस्तीफे की मांग कर डाली। वीपी सिंह को आनन-फानन में Cabinet की बैठक बुलानी पड़ी।

देवीलाल की हाजिरी में बोम्मई ने चौटाला से इस्तीफा मांग लिया।

22 मई को ओमप्रकाश चौटाला ने इस्तीफा दे दिया। अब देवीलाल को ऐसे नेता की जरूरत थी, जो हरियाणा का Chief Minister बने, लेकिन सरकार की बागडोर उनके पास ही रहे।

देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत चौटाला भी CM की रेस में थे, लेकिन ओमप्रकाश को डर था कि रणजीत Chief Minister बन गए, तो बाद में वे इस्तीफा नहीं देंगे। ऐसे में Deputy CM बनारसी दास गुप्ता का नाम तय किया गया। वे देवीलाल और ओमप्रकाश दोनों के करीबी थे। 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता दूसरी बार हरियाणा के Chief Minister बने।

‘मैं हरियाणा का CM’ सीरीज के चौथे एपिसोड में बनारसी दास गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से

साल 1975, हरियाणा के चौथे Chief Minister के रूप में शपथ लेते हुए बनारसी दास गुप्ता। बनारसी दास गुप्ता का जन्म 5 नवंबर 1917 को पंजाब की जींद रियासत के एक छोटे से गांव में हुआ। पिता रामस्वरूप गुप्ता गांव में Store चलाते थे और खेती भी करते थे। उनकी मौसी की कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कुछ सालों तक अपनी मौसी के पास रहे, लेकिन जब उनको बेटा हुआ तो बनारसी दास माता-पिता के पास लौट आए।

बनारसी दास की तीसरी कक्षा तक की Education गांव में ही हुई। उन दिनों School में दलित बच्चों को अन्य बच्चों से अलग बिठाया जाता था। वे इसका विरोध करते और उनके साथ ही बैठते।

आठवीं के बाद वे पिलानी के बिड़ला कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचे।

जब फीस जमा करने की बारी आई तो बनारसी दास ने 100 रुपए का Note दिया। Note किनारे से फटा था, मुनीम ने Note लेने से मना कर दिया। बनारसी दास के पास सिर्फ उतने ही रुपए थे। पूरा दिन उन्होंने सड़क पर बिताया। शाम को कॉलेज के मालिक घनश्यामदास बिड़ला ने उन्हें देखा और कारण पूछा। तब बनारसी दास ने उन्हें पूरा किस्सा बताया। इसके बाद उन्हें एडमिशन मिल गया।

बिड़ला कॉलेज से 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद वे पढ़ाई छोड़कर Freedom की लड़ाई में उतर गए। उन्होंने कई Movements में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ साल Jail में भी रहे।

बंटवारे के दौरान पत्नी को लेने लाहौर पहुंचे

28 फरवरी 1941, बनारसी दास की शादी भिवानी जिले के तिगराणा गांव की द्रौपदी गुप्ता से हुई। उन्होंने अपनी शादी में भी Freedom के नारे लगाए। बनारसी दास के मित्र और उन पर तीन-तीन किताबें लिखने वाले डॉ. निरजंन रोहिल्ला उनकी शादी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं- ‘बंटवारे के समय बनारसी दास की पत्नी लाहौर के कॉलेज में पढ़ रही थीं। उस वक्त दोनों तरफ कत्लेआम मचा हुआ था। बनारसी दास के पिता ने उनसे कहा कि वे लाहौर जाकर द्रौपदी को लेकर आएं। बनारसी दास लाहौर के लिए निकल पड़े।

वे पहले भटिंडा पहुंचे, लेकिन लाहौर जाने वाली Train में कत्लेआम देखकर उन्होंने Train से जाने का प्लान कैंसिल कर दिया। वे Truck से लाहौर के लिए निकल गए। रात के अंधेरे में जैसे-तैसे वे द्रौपदी को ढूंढने में कामयाब रहे। उन्होंने पूरी रात Station के पास जंगल में बिताई। सुबह भटिंडा के लिए Train पकड़ी और सीट के नीचे छिपकर पत्नी के साथ भारत पहुंचे।’

जींद रियासत को देश में मिलाने के लिए जेल गए

जींद रियासत को भारत में मिलाने में उनकी बड़ी भूमिका रही। उन्हें Jail भी जाना पड़ा। 1946 में राजनीतिक हालात बदले तो वे जेल से बाहर आए। इस दौरान जींद के महाराजा ने सीमित मताधिकार से चुने गए 65 सदस्यों की Assembly का गठन किया। बनारसी दास जींद से निर्विरोध सदस्य चुने गए।

आजादी के बाद बनारसी दास और उनके साथियों ने जींद रियासत का पंजाब में विलय करने के लिए संघर्ष किया। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद पंजाब की सभी रियासतों को मिलाकर पेप्सू Union बनाया गया। आगे चलकर पंजाब में इसका विलय कर दिया गया। रियासती प्रजामंडलों का कांग्रेस में विलय कर दिया गया। बनारसी दास भी कांग्रेस में शामिल हो गए।

कांग्रेस में शामिल होने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने भिवानी को कार्यक्षेत्र बनाया। National Labour Congress के बैनर तले मजदूरों को संगठित किया। इस दौरान उन्होंने 17 दिन तक Hunger Strike भी किया। वे 1953 से 1960 तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1953 में ही भिवानी नगरपालिका के पहले गैर सरकारी अध्यक्ष चुने गए।

1968 में बनारसी दास भिवानी से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने।

1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 81 में से 52 सीटें जीतीं। बनारसी दास फिर विधायक बने। बंसीलाल दोबारा Chief Minister बने। Chief Minister बनने के बाद बंसीलाल ने बनारसी दास को Speaker बनाया।

बंसीलाल को इंदिरा का बुलावा और बनारसी दास CM बन गए। स्पीकर बनने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने विधानसभा का सारा काम हिंदी में करने का आदेश दिया। इससे वे चर्चा में आ गए। यह पहला मौका था जब किसी Assembly में सारा काम हिंदी में करने का आदेश जारी हुआ था।

1973 में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बंसीलाल मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। उन्हें Electricity, Irrigation, Agriculture, Cooperation, Health और Civil Administration मंत्रालय मिला। इसी बीच इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को दिल्ली बुला लिया। बंसीलाल हरियाणा की कमान अपने किसी करीबी को सौंपना चाहते थे। उन्होंने बनारसी दास को मुफीद माना।

इस तरह 1 दिसंबर 1975 को बनारसी दास गुप्ता पहली बार हरियाणा के Chief Minister बने। हालांकि, इस दौरान उन पर डमी CM होने का आरोप भी लगा। कहा जाता है कि भले ही बंसीलाल दिल्ली में रक्षा मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे, लेकिन हरियाणा में हर फैसले में उनका और उनके बेटे सुरेंद्र का दखल रहता था।

1977 में कांग्रेस को 3 सीटें मिलीं, बनारसी दास ने पाला बदल लिया।

1977 में इमरजेंसी हटने के बाद राज्य में President’s Rule लगा दिया गया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 3 सीटों पर सिमट गई। बनारसी दास भी चुनाव हार गए।

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