Bihar Kosi Floods News: ब्लैकबोर्ड- 8 कमरों का अपना ही मकान तुड़वा दिया ऐसा लगा हथौड़ा ईंट की दीवारों पर नहीं, दिल पर चल रहा है

Bihar Kosi Floods News | घर, एक ऐसा शब्द जिसे सुनते और उसके बारे में सोचने भर से सुकून महसूस होने लगता है, लेकिन वही घर जिसे बनाने में Blood, Sweat और जिंदगी भर की कमाई लग जाए और एक दिन उसे तोड़ने की नौबत आ जाए वो भी खुद के हाथों से, तो इसे क्या कहेंगे?

ऐसी नौबत कभी किसी के सामने न आए, बस यही कहेंगे।

बिहार में ऐसा नहीं है। यहां कोसी नदी के किनारे रहने वाले कई लोग हर साल अपने लिए नया Accommodation बनाते हैं और फिर उसे तोड़ देते हैं। वो भी इसलिए कि घर में लगी ईंट-पत्थर और दरवाजे बच जाएं, जिन्हें वे अपने नए घर में लगा सकें।

बिहार का शोक कही जाने वाली कोसी नदी जब शांत रहती है, तो फसल लहलहाती है, लेकिन जब इसी कोसी में Flood आती है तो ये सिर्फ और सिर्फ तबाही मचाती है। जिंदगी, घर और सामान सब लील लेती है। इसीलिए इसे बिहार का शोक कहा जाता है।

यह एक दर्द भरी कहानी है, जिसे पुश्त दर पुश्त बच्चे अपनी दादी-नानी से सुनते आ रहे हैं। इस बार भी कोसी में तबाही मचाने वाली Flood आई। कहा जा रहा है कि इससे पहले ऐसी Flood 1968 में आई थी।

इस बार के ब्लैक बोर्ड के लिए हम ऐसी जगहों पर गए जहां कोसी के कहर के जख्म देखने को मिले। लोगों ने ईंट और दरवाजे बचाने अपने घर खुद तोड़ दिए। जिन लोगों ने नहीं तोड़े, उनका सब कुछ बह गया।

बिहार की राजधानी पटना से सहरसा और फिर वहां से सुपौल पहुंचने पर मुझे महेंद्र यादव मिले। महेंद्र बीते 2008 से ही कोसी नदी पर काम कर रहे हैं। उन्होंने मुझे Flood से प्रभावित गांव मुंगरार जाने की सलाह दी। इस गांव के 150 से अधिक कच्चे-पक्के मकान कोसी नदी की धार में बह गए हैं।

सुपौल में कोसी के पूर्वी तटबंध से दो किलोमीटर अंदर गांव है मुंगरार। इस बार की Flood में यहां के टोला यानी वार्ड 9 और 10 पूरी तरह से पानी में समा गए।

दोनों टोलों के उप सरपंच गंगाराम यादव ने जब ट्रायपॉड और फोन लेकर बांध से गांव में आते हुए मुझे देखा, तो रोक कर बात करने लगे। मेरा परिचय लेने के बाद वे कहते हैं, ‘29 सितंबर को हमारा टोला पानी में बह गया।’

गंगाराम यादव कहते हैं, ‘कोसी जिस तरह धार बदल रही थी, उससे मुझे शुरू में ही अंदाजा हो गया था कि ये तबाही मचाएगी। कौन चाहेगा उसका बना बनाया मकान टूट जाए। जब मकान पर हथौड़ा चलता है तो ऐसा लगता है वो दिल तोड़ रहा है। गृहस्थी उजाड़ रहा है। अपना आठ कमरों का मकान तुड़वाया है। मैं ही जानता हूं जब मकान टूट रहा था तब दिल पर क्या गुजर रही थी।’

गांव में लोग मजाक बनाए कि इ बुढ़ा बाबा ज्यादा सोच रहे हैं। जैसे-तैसे हम दो हजार ईंटा निकाल लिए। इस बार Flood में मेरा सब कुछ बह गया। जगह-जमीन नहीं है लेकिन संतोष है कि दो हजार टूकी-खड़ा (टूटा हुआ ईंट) है। उस रोज कोसी ने यहां के घरों को बहा दिया। रिश्तेदार से नाव बुलवाई। देखते ही देखते चार-पांच घंटे में जलस्तर पांच-छह फीट बढ़ गया। हम लोगों को Steamer के सहारे जैसे-तैसे बाहर निकाला गया।

अपने टोला में गंगाराम अकेले हैं जिन्होंने दो महीने पहले ही अपना मकान तुड़वाना शुरू कर दिया था। वे कहते हैं, ’80 साल का हो गया हूं। कई बार Flood देख चुका हूं। अब तो शुरू में ही इसकी धार देख अंदाजा हो जाता है कि तबाही कैसी होने वाली है। इस बार भी ऐसा ही हुआ।’

आप ईंट तोड़कर कहां ले गए?

गंगाराम कहते हैं, ‘बांध के पास हमारी एक जमीन है। उसमें दो कमरे बने हुए हैं। ईंट ले जाकर वहीं रख दी हैं। आज सात लोगों का परिवार उसी घर में है।’

इसी जगह पर गंगाराम का मकान था। उनकी 20 बीघा जमीन अभी पानी में डूबी हुई है। अपनी बात बताते-बताते गंगाराम का गला भर आता है। कोसी की धार के उस पार बचे-खुचे दो-चार मकानों की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि वहां बस एक सरकारी शौचालय और मस्जिद बची है। बाकी सब बह गया।

मैंने गंगाराम से कहा, चलिए उस पार चलते हैं। वे कहते हैं, धार बहुत तेज है, जाने में रिस्क है, लेकिन वे मेरे अनुरोध पर कोसी के उस पार जाने तैयार हो गए। करीब 20 साल पुराने Steamer से हम दोनों कोसी के दूसरे किनारे पहुंच गए।

ये फीरोजा हैं। इनका कहना है कि कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। हर समय कलेजा सा फटता रहता है। पूरा डूब गया होता तो इतना दुख नहीं होता।

उस पार सही-सलामत बचे एक मकान के पीछे दो महिलाएं थीं। हम उनके पास पहुंचे। इनमें से एक फीरोजा खान हैं। गुलाबी रंग का सलवार कुर्ता ऐसा लग रहा है जैसे महीनों से धुला नहीं हैं। आंखें पथराई सी हैं।

ये धार देखिए बाबू… कोसी महारानी सब लील गईं। मकान छह कमरे का था। बीच में जो एक पिलर दिख रह है, ये हमारे घर का ही है। कहां पता था कि इतना तेज पानी आएगा।

घर में कौन-कौन है, कब से रहती हैं आप यहां?

फीरोजा कहती हैं, ‘हमारा पुश्तैनी मकान मिट्टी का था। बड़े अरमान से नया पक्का मकान बनवा रहे थे। इसे बनवाने में Gold, Money सब लगा दिया। कोसी महारानी छाती भर का धार लेकर आईं। इचिको (जरा सा भी) समय नहीं मिला कि सामान समेट लें।’

फीरोजा की तीन बहुएं इस समय अपने-अपने मायके में हैं। उन्होंने Barrage के ओवरफ्लो होने की खबर मिलते ही उन्हें वहां भेज दिया था।

कहती हैं, ‘बहुओं को मायके भेजने की तैयारी में तीन घंटे लग गए थे। इसके अगले एक घंटे के अंदर पांच से सात फीट ऊंची धार आई और सब बहा ले गई।’

ऐसी धार अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी। कुछ नहीं बचा सके। बहू-बच्चे तो एक-एक Bag लेकर भागे थे। हमारे पास तो यही एक कपड़ा है। दो महीने से यही पहने हैं।

फीरोजा जैसी स्थिति में मुंगरार के तकरीबन सौ परिवार हैं। यहां ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें अपने घर से खाने-पीने का सामान निकालने का समय तक नहीं मिला।

मुंगरार के आस-पास घूमने के बाद हमने पूर्वी तटबंध पर रह रहे कुछ और लोगों से बात की। सड़क किनारे बने आंगनबाड़ी केंद्र में चौकी डाले रमेश मंडल बाहर लेटे हुए मिले।

ये रमेश मंडल हैं। कहते हैं, ‘दो रूम का मकान था, बरामदा था। इस घर में इतना सामान था कि क्या कहें। हम एक तिनका भी नहीं निकाल पाए।’

रमेश मंडल कहते हैं, ‘इस बार कोसी की धार इतनी तेज थी जिसकी कभी कल्पना तक नहीं की थी। रिश्तेदार के पास नाव थी इसलिए बच गए। हम अपना छानी-छप्पर उसमें लाद कर ले आए।’

सब कुछ बह गया। Property, Grain, Fan, TV सब बह गया। नई-नई बहू आई है तो कहीं भी नहीं ले जा सकते हैं। जैसे-तैसे यहां रह रहे हैं। कल साहब आए थे, बोल कर गए हैं कि खाली कर दो नहीं तो जबरदस्ती निकालना पड़ेगा।

रमेश मंडल के बगल में ही उनकी पत्नी फूल कुमारी बैठी थीं। वे कहती हैं…

देख नहीं रहे हैं कि सड़क किनारे रह रही हूं। नई-नवेली बहू है, कहां रखूं। बेटा परदेस में है। बाल-बच्चों की चिंता लगी रहती है। दो बेटे-दो बेटियां हैं। घर में नौ लोग हैं। कहां रखें, कैसे रहें। चिंता लगी रहती है।

चंद्रेश्वर कहते हैं कि दोनों भाइयों के साथ मिलकर आठ कमरों का मकान बना रहे थे। दो महीने में मकान तैयार हो जाता। Steel, Gravel, Sand सब कुछ था।

चंद्रेश्वर यादव कहते हैं, ‘आठ कमरों का मकान ढलाई तक की स्थिति में आ गया था। मलाल इस बात का नहीं कि घर बह गया। दुख इस बात का है कि समय से नाव नहीं मिली। अगर ऐसा हो गया होता तो कुछ न कुछ तो बचा लेते। कुछ नहीं तो Grain और बच्चों का Copy-Book ही बचा लेते। तीसरे दिन एक रिश्तेदार को फोन किया। Steamer वाले ने तीन हजार रुपए लिए।

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