Haryana Bhupinder Singh News l 27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी INLD 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई।
अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह।
वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘Politics ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च 2005 को CM के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व CM अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री PM सईद हरियाणा पहुंचे।
चंड़ीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टू वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’
अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई।
4 मार्च 2005, दिल्ली के Parliament अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- ‘कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’
5 मार्च 2005 को हुड्डा हरियाणा के 9वें मुख्यमंत्री बन गए। हुड्डा लगातार 2 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे। उनके पिता रणबीर हुड्डा 3 बार सांसद और एक बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे। भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार लोकसभा पहुंचे हैं। आज हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है।
हरियाणा के ताकतवर Political परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के छठे एपिसोड में पढ़िए हुड्डा कुनबे की कहानी…
जुलाई 1947, आजादी की तारीख तय हो चुकी थी। अलग-अलग जेलों में बंद नेताओं को छोड़ा जा रहा था। इस दौरान दिल्ली से 81 किलोमीटर दूर रोहतक के सांघी गांव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक संदेश आया- ‘गांधीवादी नेता रणबीर सिंह को देश की संविधान सभा में भेजा जा रहा है।’
26 नवंबर 1914, को रोहतक में जन्मे रणबीर सिंह माता-पिता की तीसरी संतान थे। पिता चौधरी मातूराम राजनीति में सक्रिय थे। वे रोहतक में कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे Arya समाज में शामिल होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे।
रणबीर के बचपन और शिक्षा पर भी Arya समाज का प्रभाव था। 1937 में दिल्ली के रामजस कॉलेज से BA पास करने के बाद वे सोच में पड़ गए कि नौकरी करें, वकालत करें या फिर खेती-बाड़ी।
फिर सब कुछ छोड़कर वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। महात्मा गांधी का संयुक्त पंजाब में दौरा हुआ तो रणबीर उनसे जुड़ गए। उन्हें तीन साल जेल की सजा हुई। दो साल तक नजरबंद रखा गया। वे रोहतक, अंबाला, हिसार, फिरोजपुर, लाहौर, मुल्तान और सियालकोट की जेलों में कैद रहे।
साल 1952, संयुक्त पंजाब के रोहतक में रैली के दौरान रणबीर सिंह हुड्डा।
आजादी के बाद हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात यानी मेव बाहुल्य इलाकों में दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि मेव जाति के लोग मूल रूप से Rajput, Jat, Aheer और Meena जाति के थे, लेकिन 12वीं सदी के बीच उन्होंने Islam अपना लिया। दंगों की वजह से मेव समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया।
पंजाब विधानसभा के सदस्य और मेवात के रहने वाले चौधरी यासीन खान मेवातियों के इस फैसले के खिलाफ थे। उन्होंने इसकी जानकारी चौधरी रणबीर सिंह को दी।
रणबीर सिंह, यासीन को लेकर महात्मा गांधी के पास पहुंचे। 19 दिसंबर 1947 को गांधी उनके साथ मेवात पहुंचे। गांधी ने कहा- ‘मेव कौम हिंदुस्तान के रीढ़ की हड्डी है। किसी से डरना नहीं है। आज से तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’
गांधी की अपील का असर हुआ और लोगों ने पाकिस्तान जाने का फैसला बदल लिया। हरियाणा, राजस्थान और यूपी के साथ लगते मेवात एरिया में आज भी मेव समुदाय की बड़ी आबादी है। इन इलाकों में रणबीर सिंह का मजबूत प्रभाव था।
1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए। रणबीर रोहतक से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 में वे दूसरी बार रोहतक से चुने गए। इसके बाद 1962 में वे संयुक्त पंजाब विधानसभा के लिए चुने गए। उन्हें प्रताप सिंह कैरों सरकार में बिजली, सिंचाई, PWD और स्वास्थ्य जैसे महकमों की जिम्मेदारी दी गई। भाखड़ा-नांगल पावर प्रोजेक्ट में उनका अहम योगदान रहा।
साल 1962-64, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, रणबीर हुड्डा और संयुक्त पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों। (बाएं से दाएं)
इंदिरा की पसंद होने के बाद भी CM नहीं बन पाए रणबीर सिंह
1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। मुख्यमंत्री पद के लिए तीन दावेदार थे- रणबीर सिंह, भगवत दयाल शर्मा और राव बीरेंद्र सिंह।
रणबीर सिंह अपनी आत्मकथा ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं- ‘लोग मेरे पास आए और कहने लगे, ‘आप कैसे बैठे हैं? आप सबसे ज्यादा तर्जुबेकार हैं। पंजाब में सीनियर मंत्री रहे हैं। आपसे ज्यादा योग्य यहां कौन है? मैंने जवाब दिया- सब योग्य हैं। मैंने आज-तक सत्ता के लिए भागदौड़ नहीं की। अब क्यों करूं?’
रणबीर लिखते हैं- ‘मैं सब कुछ तटस्थ भाव से देखता रहा। इंदिरा गांधी मेरी वरिष्ठता और देश के लिए जो कुछ भी मैंने किया था, उसे देखते हुए मुझे मुख्यमंत्री बनाना चाहती थीं। उस वक्त गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। वह पंजाब-हरियाणा के मामलों को देख रहे थे। इंदिरा उनकी बात सुन लेती थीं। उन्होंने भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बनाने में पूरा जोर लगा दिया।’
इस तरह भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले CM बने और रणबीर सिंह कैबिनेट मंत्री। तब रणबीर सिंह 52 साल के थे। उन्हें लगने लगा था कि वे ज्यादा दिन राजनीति नहीं कर पाएंगे।
बड़े बेटे को चुनाव में उतारा, लेकिन जीत नहीं दिला सके
साल 1972, कांग्रेस में दो फाड़ हो चुका था। कांग्रेस (आर) यानी इंदिरा का गुट और कांग्रेस (ओ) यानी सिंडिकेट नेताओं का गुट। तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था।
इसी साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। रणबीर ने बड़े बेटे प्रताप सिंह को कांग्रेस (आर) के टिकट पर रोहतक जिले की किलोई सीट से चुनाव में उतारा, लेकिन वे हार गए। कुछ ही सालों बाद उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली।
इधर, छोटे बेटे भूपेंद्र वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रोहतक कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे थे। वे कॉलेज के वक्त ही कांग्रेस से जुड़ गए थे।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ रणबीर सिंह हुड्डा। रणबीर शुरुआत से ही गांधी परिवार के करीबी रहे।
राजीव गांधी ने लिस्ट में भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिखा, भजनलाल ने कटवा दिया
साल 1982, भारत एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी को सौंपी थी। उसी साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने थे। सूबे की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी।
राजीव गांधी ने हरियाणा से 10-12 युवा नेताओं की लिस्ट तैयार की। इसमें भूपेंद्र हुड्डा का भी नाम था।