India Pakistan Dispute Conflict History News | मोहम्मद अली जिन्ना टीबी और लंग्स की बीमारी से थक चुके थे। वे कश्मीर में कुछ दिन आराम करना चाहते थे। उन्होंने अपने Military Secretary कर्नल विलियम बर्नी को इंतजाम करने के लिए कश्मीर भेजा।
उस वक्त तक जम्मू-कश्मीर एक आजाद State था। जिन्ना को लगता था कि 75% से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला कश्मीर Pakistan के साथ ही विलय करेगा।
लैरी कॉलिंस और डोमिनिक लैपियर अपनी किताब ‘Freedom At Midnight’ में लिखते हैं, ‘5 दिन बाद लौटे कर्नल बर्नी ने बताया कि जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह नहीं चाहते कि जिन्ना कश्मीर की मिट्टी में अपने कदम तक रखें, पर्यटक के तौर पर भी नहीं। जिन्ना समझ गए कि कश्मीर को लेकर जैसा वो सोचते हैं, स्थिति उससे एकदम उलट हो सकती है।’
‘कश्मीर की कहानी’ सीरीज
‘कश्मीर की कहानी’ सीरीज के तीसरे एपिसोड में कश्मीर के भारत में विलय और वहां हुई बड़ी जंग के किस्से…
18 जुलाई 1947 की घटनाएँ
18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने Indian Independence Act 1947 पारित कर दिया। इसके तहत देश को आजादी तो मिली, लेकिन इसे दो Dominions में बांट दिया गया- भारत और पाकिस्तान।
उस वक्त देशभर में मौजूद 565 States को लैप्स ऑफ पैरामाउंसी ऑप्शन दिया गया। इसके तहत States भारत या पाकिस्तान से जुड़ सकती थीं, या फिर खुद को आजाद भी रख सकती थीं। 15 अगस्त 1947 तक ज्यादातर States भारत या पाकिस्तान में शामिल हो चुकी थीं। सिर्फ 3 States के विलय का मामला उलझा था- जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर।
जून 1947 में भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन कश्मीर गए, लेकिन महाराज हरि सिंह ने बीमारी का बहाना बनाकर मुलाकात नहीं की। कुछ समय बाद माउंटबेटन के चीफ ऑफ स्टाफ लॉर्ड हेस्टिंग्स कश्मीर गए और अपने नोट में लिखा- जब भी मैंने विलय की बात करनी चाही, महाराज ने विषय बदल दिया।
महात्मा गांधी की यात्रा
महात्मा गांधी जुलाई 1947 में इकलौती कश्मीर यात्रा के दौरान। तस्वीर में वो शेख अब्दुल्ला की पत्नी बेगम अकबर जहां और उनकी बेटी खालिदा के साथ दिख रहे हैं।
12 अगस्त 1947 का निर्णय
12 अगस्त 1947 को हरि सिंह ने तय किया कि जम्मू-कश्मीर किसी भी देश के साथ नहीं जाएगा, बल्कि आजाद रहेगा। हरि सिंह के बेटे कर्ण सिंह के मुताबिक, भारत में लोकतंत्र लाया जा रहा था, जो महाराजा को पसंद नहीं था। पाकिस्तान मुस्लिम देश बनने जा रहा था, उसके साथ जाना भी ठीक नहीं था। हरि सिंह ने आजाद रहने के बारे में तय कर लिया था।
15 अगस्त 1947 के बाद की स्थिति
15 अगस्त 1947 के बाद भी हरि सिंह पर भारत में शामिल होने के लिए कोई दबाव नहीं बनाया गया। सरदार पटेल का मानना था कि हमें कश्मीर के मामले में नहीं उलझना चाहिए। पहले ही हमारे पास काफी State हैं। दूसरी तरफ कश्मीर को अपने साथ विलय के लिए पाकिस्तान बेचैन था।
24 अगस्त 1947 की धमकी
24 अगस्त 1947 को पाकिस्तान सरकार ने महाराजा हरि सिंह को एक चेतावनी भरा Letter भेजते हुए लिखा, ‘कश्मीर के महाराजा के लिए समय आ गया है कि उन्हें अपनी पसंद तय करते हुए पाकिस्तान को चुनना चाहिए। अगर कश्मीर पाकिस्तान में शामिल होने में विफल रहता है, तो सबसे गंभीर संकट निश्चित रूप से सामने आएगा।’
घुसपैठ की शुरुआत
सितंबर आते-आते कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की शिकायतें आने लगीं। जम्मू-कश्मीर स्टेट फोर्सेज के कमांडर जनरल हेनरी लॉरेंस स्कॉट ने महाराजा हरि सिंह से कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से की जाने वाली कई गुप्त घुसपैठ की शिकायत की।
27 सितंबर 1947 को सरदार पटेल को एक Letter में नेहरू लिखते हैं- ‘कश्मीर की परिस्थिति और बिगड़ रही है। मुस्लिम लीग बड़ी संख्या में कश्मीर में घुसने की तैयारियां कर रही है। शीतकाल में कश्मीर का संबंध बाकी भारत से बिल्कुल कट जाएगा। उससे पहले ही कुछ कर लिया जाना चाहिए।’
पाकिस्तानी हमला और भारतीय जवाब
22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के फ्रंटियर प्रॉविंस के करीब 5 हजार Kabailis ट्रकों में भरकर कश्मीर में आ गए। उन्होंने खुद को स्वतंत्रता सेनानी कहा। उन Kabailis को पाकिस्तानी Army के जवान लीड कर रहे थे।
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लेखक जाहिद चौधरी ने अपनी किताब ‘Pakistan Ki Siyasi Tareekh’ में लिखा है,
तीन दिनों तक हमलावरों ने गैर-मुस्लिमों का नरसंहार किया और उनके घरों को लूटा और जला दिया। हजारों की संख्या में उनकी औरतों का रेप हुआ और उनका अपहरण किया गया।
कश्मीर का भारत में विलय
शुरुआती इलाकों पर कब्जे के बाद वो श्रीनगर की ओर बढ़े, जहां महाराजा हरि सिंह मौजूद थे।
24 अक्टूबर को महाराजा हरि सिंह ने भारत से Military सहायता मांगी। 25 अक्टूबर को इंडियन डिफेंस कमेटी की बैठक में इस प्रस्ताव पर विचार किया गया कि कश्मीर के भारत में विलय के बिना भारत को सेना नहीं भेजनी चाहिए। इस बैठक में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और तीनों सेनाओं के ब्रिटिश कमांडर इन चीफ मौजूद थे।
उसी दिन डिफेंस कमेटी ने सेक्रेटरी वीपी मेनन को कश्मीर की स्थिति का जायजा लेने के लिए श्रीनगर भेजा। मेनन उसी दिन लौटे और कहा कि कश्मीर को हमलावरों से बचाने के लिए तुरंत सेना भेजनी चाहिए।
वीपी मेनन अपनी किताब ‘The Story Of The Integration Of Indian States’ में लिखते हैं- ‘कश्मीर के तमाम इलाकों पर Kabailis का कब्जा होता जा रहा था। 24 अक्टूबर तक वो श्रीनगर के बाहरी इलाकों तक पहुंच गए। Kabailis ने माहुरा पावर हाउस बंद कर दिया, जिससे पूरा श्रीनगर अंधेरे में डूब गया।’
विलय की आधिकारिकता
इस बीच 26 अक्टूबर को महाराजा हरि सिंह सुरक्षित ठिकाने की तलाश में श्रीनगर से जम्मू आ गए। जम्मू पहुंचने के बाद 26 अक्टूबर 1947 को हरि सिंह ने कश्मीर के भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। इस विलय पत्र के खंड 4 में लिखा है- महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की घोषणा की है।
अगले दिन 27 अक्टूबर 1947 की सुबह भारतीय फौज श्रीनगर की एयरपोर्ट पर उतरी। इसके बाद Kabailis के खिलाफ भारतीय सेना ने मोर्चा संभाला और उन्हें पीछे धकेलने लगी।
1965 की जंग और ऑपरेशन जिब्राल्टर
1965 के दशक में कश्मीर पर कब्जे वाली पाकिस्तान की आस फिर जगी। इसकी दो बड़ी वजहें थीं। पहली- 1962 में चीन के साथ युद्ध की वजह से भारतीय सेना पस्त हो चुकी थी। दूसरी- 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन की वजह से भारतीय राजनीति में एक वैक्यूम बन गया था। इसका फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान ने प्लान किया ऑपरेशन जिब्राल्टर।
ऑपरेशन जिब्राल्टर में शामिल लोगों को दो काम दिए गए। पहला- कश्मीरी मुसलमानों को भारत के खिलाफ भड़काना और दूसरा- भारतीय सेना की महत्वपूर्ण पोस्ट और चोटियों पर कब्जा करना। 5 अगस्त 1965 को जिब्राल्टर फोर्स ने घुसपैठ की, लेकिन लोकल कश्मीरियों की मुखबिरी से ऑपरेशन फेल होने लगा।
1965 का युद्ध
8 अगस्त को आकाशवाणी ने जिब्राल्टर फोर्स के पकड़े गए 4 अफसरों का इंटरव्यू प्रसारित किए। उन्होंने पूरा प्लान बता दिया। एक ऐसा ऑपरेशन, जिसे पाकिस्तान के टॉप अधिकारियों से भी छिपाकर रखा गया, वो रेडियो पर चल रहा था। पाकिस्तान को लगा कि उसका ये प्लान फेल होने वाला है तो उसने तोपों से गोलीबारी शुरू कर दी। यहीं से भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध की शुरुआत हुई।
सियाचिन का ऑपरेशन मेघदूत
13 अप्रैल 1984 की सुबह 6 बजे। सियाचिन के बिलाफोन्ड ला में विजिबिलिटी जीरो थी और तापमान माइनस 30 डिग्री सेल्सियस। वहां बेस कैंप से उड़कर दो हेलिकॉप्टर पहुंचे।