Chhindwara Pandhurna Gotmar Mela News : पांढुर्णा के GOTMAR Mela में पत्थरबाजी से 220 घायल, 4 की हालत गंभीर

Chhindwara Pandhurna Gotmar Mela News l पांढुर्णा में आयोजित Gotmar Mela के दौरान मंगलवार सुबह 10 बजे से शुरू होकर दोपहर 2 बजे तक 220 लोग पत्थर लगने से घायल हो चुके हैं। चार लोगों की हालत गंभीर बताई जा रही है। मेले के दौरान चार Health Camps भी लगाए गए हैं, जहां 11 लोगों का X-Ray किया गया। इनमें से तीन के हाथ और पैर की Haddi टूटी पाई गई हैं। सभी घायलों का इलाज Civil Hospital में किया जा रहा है।

पत्थरबाजी का दृश्य:

JAM नदी की पुलिया पर पांढुर्णा और सावरगांव के लोग एक-दूसरे पर पत्थर फेंक रहे हैं। इस खेल को शाम तक जारी रखा जाएगा। एक युवक पत्थरों से बचने के लिए Cricket Kit पहनकर आया। मेले की सुरक्षा के लिए 6 जिलों का Police Force तैनात किया गया है।

गोटमार मेला: इतिहास और परंपरा

Gotmar Mela एक दिन पहले, 2 सितंबर की शाम को शुरू हुआ था और यह खेल लगभग 2 घंटे तक चला। अंधेरा होने के बाद दोनों पक्ष अपने-अपने घरों की ओर लौट गए। BMO डॉ. दीपेन्द्र सलामे ने बताया कि सोमवार को 10 से ज्यादा लोग घायल हुए थे, जिनमें से 4 की हालत गंभीर है।

गोटमार के पीछे की कहानियां

युद्ध में हुआ था पत्थर का इस्तेमाल:

पहली कहानी पिंडारी (आदिवासी) समाज से जुड़ी है। प्राचीन मान्यता के अनुसार हजारों साल पहले जाम नदी के किनारे पिंडारी समाज का प्राचीन किला था। जहां समाज और उनकी शक्तिशाली सेना निवास करती थी, जिसका सेनापति दलपत शाह था। लेकिन महाराष्ट्र के भोसले राजा की सेना ने पिंडारी समाज के किले पर हमला बोल दिया। अस्त्र-शस्त्र कम होने से पिंडारी समाज की सेना ने पत्थरों से हमला कर दिया। भोसले राजा परास्त हो गया। तब से यहां पत्थर मारने की परंपरा चली आ रही है।

प्रेमी जोड़े की याद में गोटमार:

बुजुर्गों के अनुसार, सावरगांव की युवती और पांढुर्णा का युवक एक-दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों शादी करना चाहते थे। लेकिन दोनों के गांव के लोग इस प्रेम कहानी से आक्रोशित थे। पोला त्योहार के दूसरे दिन भद्रपक्ष अमावस्या की अलसुबह युवक-युवती भाग गए। लेकिन जाम नदी की बाढ़ में फंस गए। दोनों नदी पार करने की कोशिश करते रहे। यहां पांढुर्णा और सावरगांव के लोग जमा हो गए और प्रेमी जोड़े पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया, जिससे दोनों की मौत हो गई। तभी से प्रेमी युगल की याद में Gotmar का खेल खेला जाता है।

4 पीढ़ी से कावले परिवार करता है झंडे को स्थापित

Gotmar Mela में पलाश रूपी झंडे का काफी महत्व है। जिसे जाम नदी के बीचोंबीच स्थापित किया जाता है। इस झंडे को जंगल से लाने की परंपरा 4 पीढ़ियों से सावरगांव के सुरेश कावले का परिवार निभा रहा है। एक साल पहले जंगल में पलाश रूपी झंडे को चिन्हित किया जाता है। पोला त्योहार के एक दिन पहले इसे सुरेश कावले के घर लाया जाता है। Gotmar के दिन अलसुबह उस झंडे को जाम नदी में स्थापित किया जाता है।

चंडी माता के नाम से होता है मेले की शुरुआत

Gotmar Mela की शुरुआत Chandi Mata के नाम से होती है। सबसे पहले Gotmar खिलाड़ी Chandi Mata Temple पहुंचकर पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद जाम नदी के बीच पेड़ को लगाया जाता है। फिर पुलिया के दोनों तरफ से एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार की जाती है।

सांबारे परिवार में हुईं मौतें

Gotmar Mela में सांबारे परिवार अपने 3 सदस्यों को खो चुका है। 22 अगस्त 1955 में सबसे पहले महादेव सांबारे की मौत हुई थी। 24 अगस्त 1987 में कोठिराम सांबारे और 4 सितंबर 2005 में जनार्दन सांबारे की मौत हुई थी।

अब तक 13 लोगों ने गंवाई जान

Dainik Bhaskar की टीम ने इस Gotmar Mela में मरने वालों की संख्या की जानकारी हासिल की तो चौंकाने वाली बात सामने आई है। इस मेले में पत्थरों की बौछार से वर्ष 1995 से 2023 तक 13 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। इसका रिकॉर्ड आज भी मौजूद है।

1978 और 1987 में चलीं गोलियां, दो की मौत

इस खूनी खेल को बंद कराने के लिए प्रशासन ने सख्त कदम उठाए और Police ने गोलियां भी बरसाईं। यह गोलीकांड 1978 और 1987 में हुआ था, जिसमें 3 सितंबर 1978 को ब्रह्माणी वार्ड के देवराव सकरडे और 1987 में जाटवा वार्ड के कोठीराम सांबारे की गोली लगने से मौत हुई थी। इस दौरान पांढुर्णा में कर्फ्यू जैसे हालात बने थे। वहीं पुलिस की ओर से लाठीचार्ज भी हुआ था।

प्लास्टिक की गेंद का भी हुआ इस्तेमाल

Chhindwara प्रशासन ने मेले का स्वरूप बदलने के लिए काफी प्रयास किए। 2001 में प्रशासन ने पत्थरों की जगह Plastic Balls जाम नदी पर बिछाईं, ताकि पत्थर मारने की प्रथा बंद हो सके। लेकिन Gotmar खेलने वाले खिलाड़ियों ने Plastic और Rubber Balls को नदी में फेंककर पत्थर मारकर Gotmar शुरू कर दिया।

भगवान भी होते हैं मंदिर में कैद

Gotmar Mela के 3 दिन तक जाम नदी के किनारे स्थित Radha-Krishna Temple को बंद कर दिया जाता है। दरअसल इस मंदिर पर पत्थर गिरने से मंदिर समिति के लोग मंदिर को टाटियों से ढक देते हैं ताकि कोई नुकसान न हो सके। यही हाल जाम नदी के आसपास निवास करने वाले लोगों का भी है। उनके मकान को भी ढका जाता है।

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