Dewas News: तुलजा भवानी को चढ़ता है 5 पान का बीड़ा देवास में बहन के साथ 3 रूप में देती हैं दर्शन उल्टा स्वास्तिक बनाने की परंपरा

Dewas News | भक्त सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, यही मुरादें लिए। माता रानी के जयकारे लगाते हुए, 300 सीढ़ियां चढ़कर माता के दर पर माथा टेकने के बाद उनके चेहरे पर सुकून नजर आ रहा है। यह सब कुछ इन दिनों देखने को मिल रहा है देवास टेकरी पर। यहां ऊंची चोटी पर विराजित मां तुलजा भवानी और मां चामुंडा के दर्शन के लिए देशभर से भक्त पहुंच रहे हैं।

शारदीय नवरात्रि का आयोजन

शारदीय नवरात्रि के अवसर पर दैनिक भास्कर 9 दिनों में आपको प्रदेश के 9 देवी मंदिरों के दर्शन करवा रहा है। आज हम आपको देवास टेकरी पर स्थित माता रानी के दर पर लेकर चल रहे हैं। यह भोपाल से 160 किमी और इंदौर से 40 किमी दूर है।

देवास रियासत की कुलदेवी

मध्यप्रदेश के देवास में मां चामुंडा और तुलजा भवानी जिस पहाड़ी पर विराजमान हैं, वह समुद्र तल से 300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। भक्त रपट मार्ग और Ropeway से भी टेकरी तक पहुंच सकते हैं।

दोनों माता के दर्शन के लिए ऊपर भक्तों को 1 किमी लंबे परिक्रमा मार्ग से गुजरना पड़ता है। परिक्रमा पथ पर हनुमान मंदिर, अष्टभुजा मंदिर, अन्नपूर्णा माता मंदिर, खो-खो माता मंदिर के दर्शन भी होते हैं। दोनों माताएं देवास रियासत की कुल देवी हैं।

रक्तपीठ का महत्व

मां तुलजा भवानी के मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।

मुख्य पुजारी मुकेश नाथ ने बताया कि मंदिर का इतिहास करीब ढाई हजार साल पुराना है। यहां देवताओं का निवास है, इसलिए इसे देवास कहा जाता है। जहां मां के अंग गिरे, वह शक्तिपीठ हो गया। जहां रक्त गिरा, वह रक्तपीठ कहा गया। उन्हीं में से एक रक्तपीठ देवास में है। यहां देवी मां का रक्त गिरा था, इसलिए यहां मां चामुंडा का प्रकट्य हुआ।

देवास टेकरी पर एक किमी लंबा परिक्रमा पथ है। भक्त इस मार्ग से अलग-अलग मंदिरों तक पहुंचकर देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेते हैं। पूरे परिक्रमा पथ पर Carpet बिछाया गया है। पानी के लिए जगह-जगह मटके रखे गए हैं। छाया के लिए टीन शेड और टेंट हैं। पूरी पहाड़ी को रंग-बिरंगी लाइट्स से सजाया गया है। सभी मंदिरों की सजावट फूलों से की गई है।

9 माताओं की उत्पत्ति

ऐसी मान्यता है कि यहां नौ माताओं की उत्पत्ति हुई- तुलजा भवानी, चामुंडा, पार्वती, विजयासन, कालिका, अष्टभुजा, अन्नापूर्णा, खो-खो माता और अंबे माता। जब मां का यहां रक्त गिरा, तब तुलजा भवानी और चामुंडा माता साथ में थीं। दोनों माताएं, जहां अभी तुलजा भवानी विराजित हैं, यहीं पर खड़ी थीं।

बड़ी माता और छोटी माता के बीच बहनों का रिश्ता है। दोनों में कुछ बात को लेकर मतभेद हो गया। इसके चलते दोनों माताएं अपना-अपना स्थान छोड़कर जाने लगीं। माता चामुंडा पहाड़ को फाड़ती हुई आगे बढ़ीं। वे पहाड़ी के दूसरी ओर चली गईं जबकि बड़ी माता तुलजा भवानी पाताल में समाने लगीं।

साक्ष्य के रूप में आज भी पहाड़ी पर वो दरार मौजूद है। दोनों माताओं के मतभेद देखकर हनुमान जी और भैरव बाबा ने उनका क्रोध शांत करने और वहां रुकने की विनती की। उस दौरान बड़ी माता का आधा शरीर पाताल में समा चुका था।

छोटी माता जिस अवस्था में नीचे उतर रही थीं, उसी विराट अवस्था में पहाड़ी की दूसरी ओर विराजमान हो गईं। यही कारण है कि तुलजा भवानी का मुख दक्षिण की ओर और चामुंडा का मुख उत्तर की ओर है।

माता के तीन रूप

मां चामुण्डा और तुलजा भवानी का दरबार कई प्रकार की विशेषताओं से जाना जाता है। माता तुलजा भवानी तीन रूपों में भक्तों को दर्शन देती हैं। सुबह मां के चेहरे पर बाल रूप, दोपहर में युवा अवस्था और रात में माता रानी का वृद्ध स्वरूप देखने को मिलता है।

कुंड का महत्व

देवास टेकरी पर बड़ी और छोटी माता के अलावा भी कई देवी मंदिर हैं। हर मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है। पुजारी के अनुसार कुंड की मान्यता है कि यहां माता प्रतिदिन स्नान करती हैं।

हनुमान और भैरव की भूमिका

माता रानी के पास हनुमान मंदिर को लेकर पुजारी ने बताया, ‘शास्त्रों में कहा गया है कि हनुमान जी मां भगवती के पुत्र रूप में उनके साथ रहते हैं। वे ही मां की अगवानी करते हैं। माता रानी जहां भी जाती हैं, आगे-आगे हनुमान और पीछे भैरव बाबा चलते हैं।’

परिक्रमा पथ का विवरण

परिक्रमा पथ की शुरुआत बड़ी माता तुलजा भवानी मंदिर से होती है, जो हनुमान मंदिर, कालिका माता मंदिर, अष्टभुजा मंदिर, अन्नपूर्णा माता मंदिर, खो-खो माता मंदिर से होते हुए छोटी माता देवी चामुंडा मंदिर तक पहुंचती है। चामुंडा माता मंदिर के पास ही हनुमान जी और कालभैरव के दर पर भी भक्त माथा टेकते हैं।

टेकरी पर जाने के मार्ग

टेकरी पर जाने के लिए पैदल रास्ते के अलावा Ropeway भी है। भक्तों को माता मंदिर तक पहुंचने के लिए 300 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। Ropeway में 376 मीटर की डिस्टेंस राइडिंग के लिए 12 ट्रॉली हैं। एक ट्रॉली में एक बार में 4 लोग सवार हो सकते हैं। इससे साढ़े 5 मिनट में भक्त टेकरी पर पहुंचते हैं।

भक्तों को भोपाल चौराहे के पास से Ropeway की सुविधा मिलती है। Ropeway परिसर में फ्री में वाहन पार्क कर टेकरी तक पहुंच सकते हैं। यहां Wheelchair के साथ ही पेयजल और Toilet की फ्री व्यवस्था है। सुंदर दृश्य देखने के लिए ट्रॉली को बीच में 30 सेकंड के लिए रोका जाता है।

माता को चढ़ाते हैं पान का बीड़ा

पुजारी मुकेश नाथ ने बताया कि महिलाएं यहां सुहाग का सामान चढ़ाती हैं। किसी को बोलने में दिक्कत होती है तो वह माता को चांदी की जीभ, किसी को चलने में दिक्कत है तो वह चांदी के चरण अर्पित करता है। 56 भोग के साथ ही पांच प्रकार के फलों से भी माता को भोग लगता है। भोग या चुनरी चढ़ाने की भी आवश्यकता नहीं है, आप हाथ जोड़कर माता से मांगोगे तो आपकी मनोकामना पूरी होगी।

पुजारी ने कहा कि जिन्हें संतान नहीं होती, उन्हें माता के समक्ष बैठाया जाता है। माता के मुंह में पांच पान का बीड़ा लगाया जाता है, जो महिला की गोद में गिरता है। अगर ऐसा होता है तो माना जाता है कि माता ने उनकी मनोकामना सुन ली है। देश में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां उल्टा स्वास्तिक बनाया जाता है। मनोकामना पूरी होने पर भक्त सीधा स्वास्तिक बनाते हैं।

राजा भर्तृहरि की कथा

पुजारी मुकेश नाथ ने बताया, ‘ऐसी मान्यता है कि राजा भर्तृहरि माता पूजन के लिए उज्जैन से आया करते थे। देवास की माता टेकरी को उज्जैन से जोड़ने के लिए एक सुरंग बनाई गई थी। 45 किलोमीटर लंबी इसी सुरंग से होते हुए राजा भर्तृहरि गुप्त मार्ग से यहां पहुंचते थे। इसे ही उज्जैन की भर्तृहरि गुफा कहते हैं।

आज भी छोटी माता मंदिर के पास गुफा है। गुफा में 7 दरवाजे हैं। यहां कई गुफाएं हैं, जहां राजा भर्तृहरि और नागा नाथ के साथ ही कई बड़े संतों ने तपस्या की।’

उन्होंने कहा कि मंदिर का निर्माण देवास स्टेट के समय हुआ। मैं नाथ संप्रदाय की 41वीं पीढ़ी का बेटा हूं और माता का पूजन-अर्चन कर रहा हूं। नाथ संप्रदाय की पूजा तो आदिकाल से चली आ रही है। यहां गुरु गोरखनाथ, राजा भर्तृहरि और विक्रमादित्य ने भी साधना की। शीलनाथ बाबा की उत्पत्ति भी यहीं पर हुई।

Leave a Reply