Rewa News | मुस्लिम समुदाय में आपने पुरुषों के फोन पर Three Talaq देने की घटनाएं सुनी होंगी, लेकिन रीवा में एक मुस्लिम महिला ने अपने पति को फोन पर Three Talaq दे दिया। इसके बाद शहर काजी ने महिला की दूसरी शादी भी करवाई। अब महिला का पहला पति और पिता पिछले चार महीने से Police और मुस्लिम धर्म गुरुओं के पास जाकर अपनी शिकायतें दर्ज करा रहे हैं।
शहर काजी पर आरोप
29 जुलाई को महिला का पहला पति और पिता शहर काजी के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर SP से मिले। उनका आरोप है कि शहर काजी ने Jannat के सपने दिखाकर महिला को धोखा दिया और पैसे लेकर बगैर किसी की इजाजत के उसे तलाक दिलवाकर दूसरी शादी करवाई।
शहर काजी का पक्ष
शहर काजी मुफ्ती मुबारक हुसैन का कहना है कि मौखिक तलाक भी मान्य होता है और लिखित तलाक की कोई आवश्यकता नहीं है। काजी ने यह भी कहा कि अगर कोई Shariyat के अनुसार सलाह लेने आएगा, तो वे उसे Shariyat के हिसाब से सलाह देंगे।
इलाहाबाद के मुफ्ती का फतवा
महिला के पहले पति और पिता ने SP से मिलने से पहले इलाहाबाद के मुफ्ती से पूछा कि क्या शादीशुदा और दो बच्चों की मां मौखिक तलाक दे सकती है बिना पति और पिता से मशविरा किए? इलाहाबाद के मुफ्ती ने फतवा जारी करते हुए कहा कि महिला की दूसरी शादी गलत है और Shariyat के अनुसार यह हराम है।
पुलिस और कानून के जानकारों की राय
Police और कानून के जानकारों का कहना है कि Three Talaq कानून के लागू होने के बाद मौखिक तलाक मान्य नहीं है। SP विवेक सिंह ने कहा कि मौखिक तलाक अब मान्य नहीं है और सभी को नियम-कानून की जानकारी होनी चाहिए।
पति का बयान
महिला के पति अजीज ने बताया कि उनकी शादी 2011 में हुई थी और उनके दो बच्चे भी हैं। कुछ समय पहले उनकी पत्नी ने काजी के प्रभाव में आकर फोन पर तीन बार तलाक कहा। जब अजीज ने जानकारी ली, तो पता चला कि शहर काजी ने उसकी पत्नी की दूसरी शादी करवा दी।
महिला के पिता की प्रतिक्रिया
महिला के पिता शेख इस्लामुद्दीन ने बताया कि उनकी बेटी की शादी 14 साल पहले खौर में हुई थी और सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन काजी ने उसकी बेटी को गलत जानकारी देकर दूसरी शादी करवा दी। इस्लाम के अनुसार पति की अनुमति के बिना दूसरा निकाह नहीं हो सकता।
फतवा और काजी का बयान
इलाहाबाद के मुफ्ती शफीक अहम शरीफी (जामिया दारूस्सलाम करेली इलाहाबाद) ने शहर काजी के खिलाफ फतवा जारी किया। इसमें लिखा है कि शादीशुदा औरत जिसके दो बच्चे हैं, उसका दूसरे शख्स के साथ निकाह कराना इस्लाम में हराम है। उन्होंने शहर काजी से पूछा है कि आखिरकार किस आधार पर महिला का दूसरा निकाह करवाया गया है। जबकि इस तरह के फैसले को इस्लाम में हराम बताया गया है।
काजी ने कहा कि मौखिक तलाक हुआ, इसलिए निकाह करवाया गया, जिसे मैं गलत नहीं मानता हूं। Shariyat के हिसाब से मौखिक तलाक मान्य है। अगर मेरे पास कोई भी व्यक्ति Shariyat का वास्ता लेकर आएगा तो मैं Shariyat के हिसाब से फैसला करूंगा।
एसपी का बयान
रीवा के SP विवेक सिंह ने कहा कि मौखिक तलाक बिल्कुल भी मान्य नहीं है। नए अधिनियम के मुताबिक तलाक लिखित प्रक्रिया के तहत होना चाहिए। शहर काजी के पूरे स्टेटमेंट को देखना पड़ेगा। हर व्यक्ति को नियम-कानून का ज्ञान होना चाहिए।
कानून के जानकारों की राय
एडवोकेट वीके माला ने बताया कि संविधान में संशोधन होने के बाद पूरे देश में यह नियम लागू हो गया है कि मौखिक, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया के माध्यम से तलाक मान्य नहीं होगा। इसकी एक वैधानिक प्रक्रिया है। पति-पत्नी कोर्ट में आवेदन लेकर जाएंगे। कोर्ट में उपस्थित होकर आवेदन प्रस्तुत करेंगे। अगर पति-पत्नी आपस में सहमत नहीं हैं तो कोर्ट में जिरह होगी। पति-पत्नी साथ में नहीं रहना चाहते। इसकी पुष्टि कोर्ट के सामने की जाएगी। कोर्ट में मतभेद की वजह जानी जाएगी। दोनों पक्षों को सुनने के बाद फिर तलाक मान्य हो जाएगा। इसलिए तलाक की लिखित वैधानिक प्रक्रिया करना अनिवार्य है। वे कहते हैं कि रीवा के शहर काजी मौखिक तलाक की जो प्रेरणा दे रहे हैं वो कानूनी रूप से गलत है।
महिला का बयान
महिला का पहला पति मोहम्मद अजीज खेती-किसानी और बकरी सप्लाई का काम करता है। अजीज के 5 भाई हैं जो खेती-किसानी, इलेक्ट्रॉनिक का काम करते हैं। एक भाई Police में भी है। इस पूरे मामले में फोन पर तलाक देने वाली महिला का कहना है कि पहले पति की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिए मैंने तलाक दिया। मैं पहले पति के साथ नहीं रहना चाहती। मैंने दूसरा निकाह कर लिया है और अब मैं अपने दूसरे पति के साथ ही रहूंगी। महिला का दूसरा पति मोहम्मद नफीस अपने पिता का इकलौता बेटा है, जो जेसीबी ड्राइवर है। उसके पिता मोहम्मद नसीर मीट का काम करते हैं।
फतवा: आदेश नहीं बल्कि व्याख्या और सुझाव
फतवा अरबी भाषा का शब्द है। इसका मतलब होता है, किसी मामले में आलिम-ए-दीन यानी धर्म के विशेषज्ञ की Shariyat के मुताबिक दी गई राय। इस्लाम धर्म के जानकार वहीदुद्दीन खान के मुताबिक फतवा यानी राय जो किसी को तब दी जाती है जब वह अपना कोई निजी मसला लेकर मुफ्ती के पास जाए। फतवे का शाब्दिक अर्थ व्याख्या और सुझाव ही है और इसका मतलब यह है कि कोई इसे मानने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। यह सुझाव भी सिर्फ उसी व्यक्ति के लिए होता है और वह भी उसे मानने या न मानने के लिए आजाद होता है। यह आदेश नहीं है।