Bhopal News | सोयाबीन का Support Price 6 हजार रुपए किए जाने की मांग को लेकर मध्यप्रदेश के किसान पिछले एक महीने से आंदोलन कर रहे हैं। यह आंदोलन इस मायने में सफल रहा है कि सरकार ने किसानों की Support Price पर सोयाबीन खरीदी की मांग को मान लिया है। इसके साथ ही विदेशों से आयात किए जाने वाले Raw Food Oil पर Import Duty को बढ़ाने का फैसला भी लिया है।
14 साल बाद किसानों की बात मानी गई
मध्यप्रदेश में 14 साल बाद ऐसा आंदोलन देखा गया है, जिसमें सरकार ने किसानों की बातें मानी हैं। इससे पहले साल 2010 में भारतीय किसान संघ ने 85 सूत्रीय मांगों को लेकर राजधानी भोपाल को दो दिन तक बंधक बना लिया था। इसके बाद सरकार ने किसानों की कुछ मांगों को पूरा किया था। लेकिन, इस बार किसानों का जो आंदोलन है, वो 14 साल पहले हुए आंदोलन से काफी अलग है।
विशेषज्ञों से बातचीत
दैनिक भास्कर ने इस आंदोलन से जुड़े किसान नेता केदार सिरोही, भारतीय किसान संघ के मध्य भारत प्रांत प्रचार प्रमुख राहुल धूत और कृषि मामलों के जानकारों से बातचीत की। इससे समझा गया कि आखिर आंदोलन की रूपरेखा कैसे और कब बनी, किसानों को आंदोलन से कैसे जोड़ा गया और आंदोलन को प्रभावी रखने के लिए क्या रणनीति बनाई गई। पढ़िए रिपोर्ट…
आंदोलन की रणनीति कैसे बनी
एक्सपर्ट टीम ने 80 हजार किसानों पर रिसर्च की
किसान नेता केदार सिरोही बताते हैं कि जून के आखिरी हफ्ते से जुलाई के पहले हफ्ते तक सोयाबीन की बुआई होती है। इसी बीच 3 जुलाई को मध्यप्रदेश का Budget पेश हुआ। चुनाव से पहले सरकार ने Rice की 3100 रुपए और Wheat की 2700 रुपए प्रति क्विंटल खरीदी का वादा किया था।
Budget में इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ। सोयाबीन को लेकर भी सरकार ने कोई घोषणा नहीं की। इसके बाद हमने सोयाबीन किसानों का सर्वे शुरू किया। यह पता किया कि एक एकड़ फसल की लागत कितनी है। इसके लिए प्रदेश के करीब 80 हजार किसानों से Forms भरवाए गए।
डेटा इकट्ठा करना
डेटा इकट्ठा होने के बाद हमने इसकी Study के लिए एक टीम बनाई। इस टीम में Agriculture Expert, Tech Expert, किसान नेता, Corporate Expert, Researcher और पूर्व प्रशासनिक अधिकारी शामिल थे। टीम ने एक महीने तक Data Analysis किया। यह समझा कि सोयाबीन के दाम कब से नहीं बढ़े हैं? इस साल पैदावार की स्थिति क्या रहेगी? इस Analysis से पता चला कि इस साल सोयाबीन का Production अच्छा होने वाला है, लेकिन किसानों को इसके सही दाम नहीं मिलेंगे।
एमएसपी 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल कैसे तय किया गया
सिरोही बताते हैं कि पूरे विश्व में सोयाबीन और इसके Products की कीमतें Chicago Board Of Trade तय करता है। बोर्ड का अनुमान है कि दुनिया के बाकी देशों में सोयाबीन का Production बढ़ने से इसकी कीमतों में गिरावट आएगी। इस वजह से DIOC के सही दाम व्यापारियों को नहीं मिल सकेंगे।
इसी आधार पर हमने Analysis किया कि मध्यप्रदेश का सोयाबीन 3000 से 3500 रुपए प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं बिकेगा। यदि ऐसा हुआ तो किसान बर्बाद हो जाएगा। तब हमने कैलकुलेशन किया कि सोयाबीन का Minimum Support Price कितना हो जिससे किसानों को फायदा हो।
आंदोलन के आगे बढ़ने के 5 पॉइंट्स
- सोशल मीडिया के लिए प्रोफेशनल टीम हायर कीकिसानों तक इस मुद्दे को पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया को बड़ा हथियार बनाया गया। प्रोफेशनल टीम के जरिए 3 हजार युवाओं को जोड़ा गया। साथ ही Social Media Influencers के जरिए सोयाबीन के दाम 6000 हैशटैग को प्रमोट किया गया।
- एक सूत्रीय मांग पर आंदोलन, सोयाबीन ही नेताअक्सर किसी आंदोलन की अगुआई कोई नेता करता है, लेकिन इस आंदोलन का कोई नेता नहीं था। सोयाबीन और तिरंगे झंडे को ही आंदोलन का नेता बनाया गया। किसान आंदोलन अक्सर कई मांगों पर होते हैं, लेकिन इस आंदोलन को केवल एक सूत्रीय मांग, सोयाबीन का Minimum Support Price बढ़ाने पर ही केंद्रित किया गया।
- आंदोलन शहरों की बजाय गांवों तक सीमितआंदोलन कर रहे किसानों को शहरों की तरफ रुख नहीं करने दिया गया। जिन जिलों में सोयाबीन का Production होता है, वहां के किसानों से जिला स्तर पर ज्ञापन दिलाने की रूपरेखा तैयार की गई।
- आंदोलन उग्र न हो, इसकी खास हिदायतप्रदर्शन के दौरान अक्सर कुछ लोग उग्र हो जाते हैं, लेकिन इस आंदोलन में किसी किसान पर कोई FIR दर्ज नहीं हुई। हर बड़े जिले में प्रदर्शन हुए, लेकिन कहीं से पथराव, आगजनी या तोड़फोड़ की घटनाएं सामने नहीं आईं।
- राजनीतिक दलों से आंदोलन को बचाने की चुनौतीकिसान नेता केदार सिरोही कहते हैं कि आंदोलन को राजनीतिक दलों से बचाना सबसे कठिन काम था। जब आंदोलन ने रफ्तार पकड़ी तो विपक्ष समेत दूसरे राजनीतिक दल इसे कैप्चर करने में जुट गए थे। ऐसे में हमने किसानों को कह दिया था कि वे किसी भी राजनीतिक दल के प्रलोभन में न आएं। कांग्रेस ने जो Justice Yatra निकाली, वो इस आंदोलन से अलग है।
सरकार ने किसानों की मांग क्यों मानी
एक्सपर्ट बोले- सरकार स्थितियों को भांप चुकी थी
वरिष्ठ पत्रकार और कृषि मामलों के जानकार आलोक ठक्कर कहते हैं कि किसी भी आंदोलन की Timing मायने रखती है। यह आंदोलन ऐसे समय हुआ, जब फसल मंडी में बिकने को तैयार हो चुकी थी। सरकार को भी पता था कि मंडी में किसानों को MSP से 1200 से 1500 रुपए कम दाम मिलेंगे। इससे किसानों का गुस्सा बढ़ने की पूरी संभावना थी।
दूसरी तरफ, सरकार इस बात को भांप चुकी थी कि इस आंदोलन का कोई नेता नहीं है। यह किसानों का ही आंदोलन है और देरी की तो ज्यादा उग्र हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि ग्रामीण इलाकों में BJP के सदस्यता अभियान पर संकट खड़ा हो गया था। BJP कार्यकर्ताओं को किसानों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा था।
भारतीय किसान संघ का समर्थन
किसानों के इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के आनुषंगिक संगठन भारतीय किसान संघ ने भी समर्थन दिया। संघ के प्रदेश अध्यक्ष राहुल धूत कहते हैं कि सरकार ने महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान में पहले ही MSP पर सोयाबीन की खरीदी को मंजूरी दे दी थी।
वहां की सरकारों ने केंद्र से इसकी मांग की, लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ जबकि यह Soy State है। हमने सरकार से MSP पर सोयाबीन को खरीदने की मांग की। धूत कहते हैं कि हम राष्ट्रवादी संगठन हैं, हमारा उद्देश्य किसानों का हित है। मध्यप्रदेश के 60 लाख किसान हमारे संगठन का हिस्सा हैं।
दो बड़ी मांगें पूरी होने के बाद भी एमएसपी पर क्यों अड़े
किसान आंदोलन की वजह से एमपी सरकार ने MSP पर सोयाबीन की खरीदी का फैसला किया है। साथ ही केंद्र सरकार ने विदेशों से आयात किए जाने वाले कच्चे खाद्य तेल पर Import Duty बढ़ा दी है। इन दोनों फैसलों से किसानों को फायदा होगा।
इसके बाद भी किसान 6000 रुपए MSP की मांग पर क्यों अड़े हैं? किसान नेता केदार सिरोही कहते हैं कि महाराष्ट्र सरकार ने सोयाबीन किसानों को प्रति hectare 5500 रुपए Bonus देने का ऐलान किया है। मध्यप्रदेश में प्रति hectare सोयाबीन की लागत महाराष्ट्र से ज्यादा है। दोनों ही जगहों की सरकारों में BJP अहम किरदार में है, इसलिए सबसे बड़े सोया Producer होने के नाते मध्यप्रदेश के किसानों का आंदोलन जारी है।
कृषि मंत्री बोले- हमने जितनी जल्दी हो सके, मांगों को पूरा किया
किसान जब आंदोलन कर रहे थे, तब मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री ऐंदल सिंह कंसाना ने इसे कांग्रेसियों का आंदोलन बताया था। अब जब सरकार ने किसानों की मांग पूरी की है तो उनका कहना है कि जितनी जल्दी हो सकता था, हमने काम किया है।
एक दिन में हमने Desire भेजी, दूसरे दिन केंद्र सरकार ने उसे मान लिया। अब कांग्रेस वाले 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल MSP की मांग कर रहे हैं। वो पूरी करेंगे तो 7 हजार रुपए मांगेंगे। उनसे पूछा- भारतीय किसान संघ भी किसानों के साथ है तो बोले- ये उनसे पूछिए कि अब क्यों आंदोलन करने वालों का साथ दे रहे हैं?
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25 साल बाद एमपी में सरकार खरीदेगी सोयाबीन
मध्यप्रदेश में करीब 25 साल बाद सोयाबीन की सरकारी खरीद होगी। सोयाबीन उत्पादक किसानों के आंदोलन को बढ़ता देख डॉ. मोहन यादव सरकार ने 10 सितंबर को 4892 रुपए प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सोयाबीन खरीदी कराने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा। इसे 24 घंटे में ही केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंजूरी दे दी।